MY DEAR TOILET - 1 in Hindi Short Stories by Suresh Pawar books and stories PDF | MY DEAR TOILET - 1

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MY DEAR TOILET - 1

MY DEAR TOILET

WRITTEN BY SURESH PAWAR


“लगे तो लगे भले किसिकी बद्दुआ लगे
लेकिन किसी की हमे आदत ना लगे।“

इंसान अक्सर इस लिए नहि टूटता कि उसे किसी से मोहब्बत हो गई और किसी ने उसका दिल तोड़ दिया। वह इसलिए टूटता है क्योंकि उसे सुबह शाम उठते बैठते, सोते जागते, खाते पीते किसी की आदत हो जाती है। अगर जिस की आदत हो जाए और वो हमसे बिछड़ जाए तो उस आदत का क्या? इंसान उसे बर्दास्त नही कर पाता। कही तौर पे वो अपनी मानसिक स्थिति खो देता है और हार जाता है। क्योंकि वह स्वीकार ही नही कर पाता कि वह जिसे चाहता था वह अब उसके जीवन में नही है। कभी कभी वह अपने दिल को झूठा दिलासा देने के लिए यह बात मान लेता है कि जिसे उसने खोया है वह लौटकर जरूर आयेगा।
“साँसे एक दिन छूट जाती है, नही छूटती तो ये आदते है”।


आदते, जरूरी नही कि हमे जिस की आदत हुई है वह सिर्फ़ एक इंसान हो। वह एक आपका पालतू जानवर हो सकता है, या कोई चीज जो आपके रोजाना इस्तमाल में आती हो, या वो घर जहां आप कई सालों से रह रहे हो, या उस घर में किसी कोने में बसा एक टॉइलेट। जी यह कहानी भी एक टॉइलेट के प्रति एक आदत की है। तो चलिए चलते है इस कहानी के एक अनोखे सफर पे “MY DEAR TOILET”.


अनिरुद्ध हमारी कहानी का हीरो, जो पेशे से एक बिजनेसमैन है। जो अपना काम महेनत से और ईमानदारी से करता है। वह एक सीधा साधा आदमी है जो सबसे अच्छे से और प्रेम से पेश आता है। अनिरुद्ध की अच्छी आदत यह है कि वह सबको खुश रखना अच्छे से जानता है। उसे किसी नशीली चीजे या लौंडियाबाजी जैसी कोई खराब आदते नही है। लेकिन इस दुनिया में उत्तम कोई इंसान नही। किसीना कसी में कोई ना कोई खराब आदत तो होती ही है। किसी में ज्यादा होती है तो किसी में कम होती है। लेकिन ये बात भी किसी नजरिये पर निर्भर करती है। जैसे कि कोई इंसान किसी एक चीज को काफ़ी गलत समझता है तो दूसरा इंसान उसी चीज को कम गलत समझता है। तो कोई कोई इंसान तो उस चीज को गलत ही नही समझता। चलो देखते है आपका नजरिया कैसा है? आप को अनिरुद्ध की ये आदत सही लगती है या गलत? अनिरुद्ध की जिस आदत के बारे में मै बता रहा हूँ वह आदत यह है कि वह घंटों तक अपने टॉइलेट में वक़्त बिताता है। वह जब सुबह उठता है तो उसकी सुबह की शुरुआत हमेशा एक ग्लास पाणी, फिर चाय और फ़िर टॉइलेट। टॉइलेट में अनिरुद्ध कोइना कोई किताब पढ़ता है, किसी विषय के बारे में सोचता है। तभी जाकर वह सारी भड़ास टॉइलेट में फ्लश कर पाता है। अच्छे से फ्री हो कर अनिरुद्ध ऑफिस जाता है और अपना वक़्त अच्छे से और काफ़ी उत्साह के साथ निकाल पाता है। लेकिन अनिरुद्ध की इस टॉइलेट की आदत को आप अच्छा समझे या बुरा अनिरुद्ध का परिवार इसे बुरी आदत ही समझते है क्योंकि अनिरुद्ध का घर काफ़ी पुराना है। जिसे उसके दादाजी ने बनवाया था। जिस कारण उस घर में एक ही टॉइलेट बन पाया है। अनिरुद्ध के परिवार में उसके पिता रवींद्र, माता ऋतुजा और एक भाई रितेश। अनिरुद्ध की माता को छोड़कर सब नौकरी और बिजनस करते है। अनिरुद्ध बिजनस करता है, अनिरुद्ध के पापा और भाई नौकरी करते है और अनिरुद्ध की माता गृहिणी है। सबको अपनी दिनचर्या के हिसाब से अपना काम करना होता है लेकिन अनिरुद्ध की घंटों टॉइलेट में बैठने की आदत से सब परेशान होते है। लेकिन घरवालों को ऐसी परेशानी झेलने की आदत हो चुकी थी। एक दिन शाम को बहुत ज्यादा खाने की वजह से अनिरुद्ध के पापा यानी रवींद्रजी का पेट खराब हो जाता है। रवींद्र जी रात को अच्छे से नींद नही ले पाते। सुबह जब उनका फिर पेट खराब होता है तभी वह टॉइलेट की और दौड़ लगाते है। लेकिन उनका नसीब। वहा पहले से ही अनिरुद्ध जा बैठा होता है। पापा अनिरुद्ध से काफ़ी अनुरोध करते है कि आज वो जल्दी कर ले उनको काफ़ी तकलीफ है आज। फ़िर भी अनिरुद्ध बाहर नही आता। फ़िर रवींद्र जी अनिरुद्ध पे चिल्लाते है, उसे डाटते है फ़िर भी अनिरुद्ध बाहर नही आता। क्योंकि अनिरुद्ध को तो टॉइलेट में घंटों वक़्त गुजारने की आदत लग गई थी। मंजगुरण रवींद्रजी को सरकारी टॉइलेट का सहारा लेना पड़ा। वह भी क्या करते उनके पास कोई दूसरा उपाय ही नही था। उस दिन उनको एसा लग रहा था कि उन्होंने अनिरुद्ध को जन्म दे कर अपने ही पैरों पे कुल्हाड़ी मार ली हो। यह आप बीती सिर्फ़ रवींद्र जी की नही बल्कि अनिरुद्ध के भाई और उसकी माताजी ने भी अनिरुद्ध के कारण काफ़ी कुछ सहा है। अनिरुद्ध की इस आदत ने पूरे परिवार को परेशान कर रखा था। अनिरुद्ध को अपने घर के टॉइलेट की एसी आदत लग गई थी कि वह अपनी भड़ास किसी और जगह या किसी और टॉइलेट में निकाल ही नही पाता। इसी कारण वह कही जा नही पाता था और जाता भी तो बस एक दिन के लिए और दूसरे दिन वापस आजाता था। वह बस अपने घर के ही टॉइलेट में अच्छे से भड़ास निकाल पाता था। उसका कहना था कि जो सुख, परम आनंद और शांति मुझे मेरे घर के टॉइलेट में मिलती है वो और कही नही मिलती। लेकिन वक़्त सबका बदलता है। यहाँ वक़्त के साथ साथ लोग बदल जाते है तो चीज़े क्यूँ ना बदले? एसा ही एक वक़्त अनिरुद्ध के जीवन में आता है। जिस का अनुमान अनिरुद्ध ने कभी नही लगाया था।


अनिरुद्ध अपनी मेहनत से और ईमानदारी से काफ़ी तरक्की करता है। अपने बिजनस को काफ़ी आगे तक ले जाता है और खुद भी आसमान को छूता है। वह एक दिन अपने लिये और अपने परिवार के लिये एक बंगला खरीदता है। जहा हर रूम में एक टॉइलेट होता है। यानी किसी को इंतजार करने वाली कोई परेशानी नही थी। अनिरुद्ध ने अपना टॉइलेट इस तरह डिजाइन किया था कि जहा उसने एक छोटी सी लाइब्रेरी बनाई थी। टॉइलेट का इन्टीरीअर काफ़ी कुदरत से जुड़ा हुआ था ता कि अनिरुद्ध को शांती मिल सके। इस बात से अनिरुद्ध और उसके घरवाले काफ़ी खुश थे। लेकिन अक्सर इंसान जैसा सोचे वैसा कहा होता है। अनिरुद्ध अपना पुराना घर बेच देता है। नए मालिक कुछ ७ दिन में वहा रहने आनेवाले होते है। अनिरुद्ध अपने परिवार के साथ नए घर में शिफ्ट हो जाता है। पूरा सामान शिफ्ट करते करते शाम हो जाती है। रात को अनिरुद्ध और परिवार खाना खाकर सो जाते है क्योंकि पूरा दिन काम करके थक गये होते है। दूसरे दिन सुबह सब उत्साह के साथ उठते है। सभी ने अपना घर बदला होता है लेकिन दिनचर्या वही होती है। अनिरुद्ध अपने समय के हिसाब से सुबह उठता है, ब्रश करता है फिर टॉइलेट में जाता है। पढ़ने के लिए एक किताब निकालता है। लेकिन उसे पहले की तरह वह माहोल नही मिलता जिस माहोल की आदत उसे हो गई थी। उसका किताब पढ़ने में मन नही लगता, नाही वह शांती महसूस कर पाता है। उसी कारण वह अपनी भड़ास भी नही निकाल पाता। उसे लगता है कि नई जगह है, नया माहोल है शायद अजस्ट करने में थोड़ा वक़्त लगेगा। उसी दौरान अनिरुद्ध को अपने घर और अपने घर के कोने में बसे उस टॉइलेट की याद आती है। लेकिन अनिरुद्ध उस बात को टालकर तैयार होकर अपने ऑफिस चला जाता है। ऑफिस में भी कोई काम ठीक से नहि हो पाता और नाही काम में मन लग पाता है। जब तक पेट साफ़ ना हो तक तक कोई भी काम करने का नजरिया कैसे साफ़ होगा? लेकिन अनिरुद्ध इस बात को भी टाल देता है। और अपना काम फिर से सही करने की कोशिश में लग जाता है। अनिरुद्ध शाम को घर आता है। उसका मुह लटका हुआ होता है। घरवाले उसका उतरा हुआ चेहरा देखते है। रवीन्द्रजी उसे पूछते है कि बेटा अनिरुद्ध कोई परेशानी है? आज तेरा मुह क्यू उतरा हुआ है? अनिरुद्ध जवाब में यह कहता है कि ऑफिस में काफ़ी काम था और स्ट्रेस भी ज्यादा था जिस वजह से वह थक गया है। इसलिए उसका चेहरा उतरा हुआ नजर आ रहा है। इतना कहकर अनिरुद्ध वहा से चला जाता है। सब खाना पीना करके सो जाते है। दूसरे दिन फिर सब उत्साह के साथ उठते है। अनिरुद्ध भी उसी उमंग के साथ उठता है, ब्रश करता है और टॉइलेट में जाता है। लेकिन नाही वह किताब पढ़ पाता है, नाही उसे शांती मिलती है और नाही अपनी भड़ास निकाल पाता है। फ़िर अनिरुद्ध परेशान हो जाता है। ऑफिस जाता है। जैसे कल का दिन बीता था वैसा ही आज का दिन अनिरुद्ध का बितता है। अनिरुद्ध फिर मुह लटकाये घर आता है। फिर से उसके पापा उस पर गौर करते है तो वह निराश नजर आता है। उसके पापा उसे कारण पूछते है तो वह वही कल वाला कारण बताता है। इस बार उसकी मम्मी वहा मोजूद रहती है। वह कहती है कि अनिरुद्ध पहले भी काम करता था लेकिन इतना परेशान उसे आजतक नही देखा। एसा तो नहि घर बदलने के कारण वह अजस्ट नही कर पा रहा हो। रवींद्रजी कहते है अगर एसा है तो उसे हमे उसके हाल पर छोड़ना होगा क्योंकि नए माहोल में उसे अजस्ट होने में समय लगेगा और यह काम उसे खुद ही करना पड़ेगा। दो दिन टॉइलेट ना जाने के कारण अनिरुद्ध नाही ठीक से खा पाता है नाही ठीक से सो पाता है। उसके पेट में अजीब सा दर्द होता है। उसे काफ़ी अजीब सा महसूस होता है। वह अपनी हालत खराब कर लेता है। वह सोचता है कल सुबह डॉक्टर के वहा जाना पड़ेगा नहि तो तकलीफ और बढ़ सकती है। अनिरुद्ध सुबह तीसरी कोशिश करता है लेकिन तीसरी कोशिश भी नाकाम होती है। फिर वह सोचता है अब तो डॉक्टर को दिखाना ही पड़ेगा। वह अपनी ऑफिस से छुट्टी ले लेता है और अपने आप को डॉक्टर को दिखाने जाता है। जिस रास्ते से अनिरुद्ध गुजर रहा होता है उस रास्ते पर उसका पुराना घर पड़ता है। जब वह अपने पुराने घर के पास से गुजरता है तो अपने पुराने घर को देखकर अपनी कार रोक लेता है। घर को देख वह अंदर जाना चाहता है लेकिन घर की चाबी घर के एजेंट के पास होती है। वह वापस मुड़ता है और अपनी कार में बैठने ही वाला होता है तभी उसके पेट में प्रेशर बढ़ता है। उसे लगता है शायद मुझे मेरे इस पुराने घर के टॉइलेट की ऐसी आदत हो गई है कि ये आदत शायद कभी छूट नही पाएगी। वह तुरंत अपने घर के एजेंट को फोन करके बुलाता है। एजेंट पास ही होने के कारण १० मिनट में आजाता है। अनिरुद्ध एजेंट से चाबी लेता है और अपने घर में जाता है। वह बिना रुके सीधा टॉइलेट में चला जाता है। बहुत दिन तक टॉइलेट के इस्तमाल ना होने के कारण टॉइलेट के अंदर धूल बैठी होती है। अनिरुद्ध के पास पढ़ने के लिये किताब नही होती। लेकिन इन सब बातों की परवाह किये बिना अनिरुद्ध अच्छे से अपनी भड़ास निकालता है। अनिरुद्ध की भड़ास निकलने के बाद उसे बहुत आराम मिलता है। एक बड़ी शांती का एहसास होता है। एक चैन और शकुन सा मिलता है। तब उसके लिए वह जगह किसी स्वर्ग से कम नही होती। उसे वहा परमसूख, परम आनंद मिलता है। उसकी तबीयत अचानक से अच्छी हो जाती है। उसे लगता है अब उसे डॉक्टर की जरूरत नही। उसका इलाज अब हो गया है। वह समझ गया कि उसे इस टॉइलेट की ऐसी आदत हुई है जैसे एक शराबी को एक शराब से होती है, एक मुसाफिर को अपनी मंजिल से होती है। अगर उसे अपनी भड़ास निकालनी है तो यह एक मात्र टॉइलेट है जहा वह निकाल सकता है। अनिरुद्ध बाहर आता है। एजेंट अनिरुद्ध को बाहर आता देख कहता है अरे सरजी आप आ गये। लाइये चाबी दे दीजिए। ताले की दो चाबीया होती है। अनिरुद्ध एक चाबी एजेंट को देता है और एक चाबी खुद रख लेता है। जब अनिरुद्ध एक चाबी रखता है तो एजेंट उलझन में पड़ जाता है। वह सोचता है कि इस साहब को चाबी की क्या जरूरत। लेकिन एजेंट कुछ नही पूछता और वहा से चल जाता है। फ़िर अनिरुद्ध डॉक्टर के पास नही जाता और सीधा अपनी ऑफिस चला जाता है। पेट साफ होने के कारण अनिरुद्ध बहुत शांत हो जाता है। और शांती और आत्मविश्वास से अपना सारा काम अच्छे से कर पाता है। वह खुशी जो कही खो गई थी वह फिरसे लौट आती है। अनिरुद्ध का पूरा दिन बहुत अच्छा जाता है। वह खुशी के साथ अपने नए घर लौटता है। उसके चेहरे पर मुस्कुराहट होती है। उसके मम्मी पापा उसे देखते है। अनिरुद्ध को खुश देख वह दोनों भी खुश होते है। उन्हे लगता है। अनिरुद्ध समझ गया है कि उसे अब कैसे अजस्ट होना है और कैसे खुश रहना है। फ़िर सभी परिवार अच्छे से खाना पीना करते है और अच्छे से सो जाते है। अगले दिन सुबह अनिरुद्ध अपना ब्रश,टाउल, साबू और एक किताब लेकर अपने नए घर से १२ km दूर अपने पुराने घर पहोचता है और वही ब्रश करता है, नहाता है और अपनी पूरी भड़ास अपने टॉइलेट में निकालता है। वही शांती, वही माहोल को वापस पाकर अनिरुद्ध बहुत खुश होता है। लेकिन दोस्तों आपने ऐसा कभी सुना है कि खुशी आपके घर हमेशा के लिए ठहर गई? नहि ना। तो अनिरुद्ध की ये जो पलभर की खुशी है अब ये कहा उड़ने वाली है? जानते है अगले भाग में....
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